Friday, September 27, 2019

निधि छंद - Nidhi chhanda Hindi poetry

निधि छंद -





Explained By - Mr. Arvind Chasta "Aviraj" 
(kapasan , Chittorgarh Rajasthan)


परिभाषा - निधि छंद आँक जाती का एक सम मात्रिक छंद है।
चार चरण होते है।
इसके प्रत्येक चरण में 9 मात्राएँ होती है।
हर चरण के अंत में लघु - 1 होना अनिवार्य है ।🌹
दो दो चरण अथवा चारों चरण सम तुकांत हो सकते है।
अभिप्राय
1और 2 चरण =तुकांत
3 और 4 चरण =तुकांत होना आवश्यक है। 🌹
*
गूढ़ार्थ- जैसा की शास्त्रो में वर्णन है। कि आठ सिद्धि और नव निधि मानी गई है।
अतः यथा नाम तथा गुण निधि छंद 9 मात्राओ युक्त होता है। इस छंद में लिखे गए भाव सौभाग्य को प्राप्त होते है।🙏
चूँकि इस छंद के लिए कोई विशेष मापनी का शास्त्रो में वर्णन नही मिलता है। लेकिन शब्द शिल्प और पद लालित्य के लिए 
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निधि छंद
🌹
द्वार पे कतार, आप हो उदार।
आज है पुकार, कष्ट को निवार।।
🌹
में सदा अबोध, हो दया सुबोध।
दास को उबार, हो सदा सुधार।।
🌹
आप ही महेश, आप ही गणेश।
नन्द के कुमार, प्रेम की फुहार।।
🌹
हे दया निधान, हे कृपा निधान।
दुःख का निदान, आप हो महान।।
🌹
शारदा सुनीति, दूर हो अनीति।
ज्ञान का प्रकाश, विश्व का विकास।।
 रचनाकार
अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन , चित्तौड़गढ़
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निधि छन्द , 


टूटते हजार, मानवाधिकार।
न्याय तार-तार, लोकतंत्र हार।

सत्य होय भंग, राजनीति रंग।
भारतीय लाल, हो रहे निढाल।


टूटता समाज, झूठ राजकाज।

ये बलात्कार, मानसिक विकार।


घूमता विदेश, मौज में नरेश।

वाह ठाट बाट, बंद होय हाट।


बिकाऊ विभाग, खोल आँख जाग।

मर रहा जवान, डूबता किसान।


क्रांति की मशाल, तब जले विशाल।
जब उठे पुकार, देश में अपार।

लूट देश खाय, हर तरह निकाय।
देश प्रेम हाय! चोर अब सिखाय।



निधि छन्द
गीतिका


बीता वो समय, तुमसे था प्रणय।

जीवन की कलह, ले आयी प्रलय।

जोड़े हाथ हम, करते थे विनय।

तुम भूले सजन, हम थे प्रेममय।

टूटा सब भरम, तुमसे कर विलय।

सपने टूट कर, बिखरा ये निलय।

       जितेंदर पाल सिंह
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निधि छंद
चरणान्त लघु अनिवार्य।

जीवन का मंच , नाना बिसंच ।
निकले जो नीर , भू छाती चीर ।।

करते अन्याय , ये क्या है हाय ?
भरते तालाब , हा ! कैसा भाव ?

है हाहाकार , पानी की मार ।
पानी का हाल , देखो बेहाल ।।

जंगल को काट , शोणित ले हाथ ।
ये है संहार , सुन ले संसार ।।

पौधे को गाड़ , खतरे को ताड़ ।
बिन मौसम चार , जीवन बेकार ।।

समझाये कौन , हर कोई मौन ।
गा लो जी आज , जीवन का राग ।।

मौसम बीमार , क्या है स्वीकार ?
मौसम का आज , कर ले इलाज ।।

बदरी की प्यास , झरने की आस ।
सबका आधार , जंगल भरमार ।।

अभय कुमार आनंद
बिष्णुपुर बांका बिहार व लखनऊ उत्तरप्रदेश

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निधि छंद

नाप तोल बोल,शब्द प्रीत घोल,

शब्द देत धार,होत हृदय पार।


घाव देत बाण,शब्द लेत प्राण,

त्याग दर्प शान,धैर्य राख जान।


शब्द शब्द आग,देत जीभ दाग़,

शीत शब्द प्यार,होय जीव सार।


शब्द तीर पार,देत कर्ण भार,
टूट जात साथ,होत तू अनाथ।

सुवर्णा परतानी, हैदराबाद

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निधि छंद :-   रचना:-

गंगा की धार,धोती सब भार।
हो जा तैयार,कर नैया पार।

सुन मुरली तान,मन अब तू मान।
भज ले हनुमान,सुंदर हो गान।

रामा हो राम,बंसी धर श्याम।
बन जाये काम,चल प्रभु के घाम।

पूण्य कर या पाप,कर ले मन जाप।
भव सागर पार, 
जग का यह सार।

गोपाल कृष्णा भावसार
इंदौर सुखेड़ा।
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निधि छ्न्द 

गंगा का सार ,करती उद्धार ,
बहती है धार ,गाओ मल्हार।,
.....
नदिया में शोर ,बरखा घनघोर ।
जीवन की भोर ,नाचे मन मोर ,
......
ले कर के आस ,गंगा के पास ।
मन का विश्वास ,कर पूरी आस ।
....
तन निर्मल होय ,मन कलकल होय।
पापों को धोय ,जय जय जय होय ।
........
कर ले तू दान,होगा कल्याण।
कर मां का मान , करके गुणगान ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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निधि छंद

मात की पुकार ,कर रहे गुहार ।
जान से न मार ,फूल से बहार।।

दैत्य है दहेज ,मत इसे सहेज ।
हो सदा गुरेज ,दान ज्ञान भेज।।

लोभ के शिकार ,क्यों सहे प्रहार ।
आज हो विचार , हरि हरे विकार ।।

रोकते न आग ,धो सके न दाग ।
छोड़ नींद जाग ,भूल द्वेष राग।।

रानी सोनी"परी
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निधि छ्न्द

अन्तर्मन धार। शब्दों से प्यार।
औ मात्रा भार। कविता का सार।

भाषा विन्यास।करुणा औ हास।
रस का हो वास।सब कवि के पास।

तज दें अभिमान।गुरु से लें ज्ञान।
उर में हो ध्यान।मिलता सम्मान।

परहित आधार।कर अंगीकार।
उर मृदु व्यवहार।सुखमय संसार।

कृष्णा श्रीवास्तव , हाटा,कुशीनगर

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निधि छंद ।
**** **** **** ****

और झूठ बात,अब नहीं सुहात,
ढूँढ आसपास,खो गया विकास।।

रो रहे किसान,और नौजवान,
भूख है उघार,मांगती उधार।।

चीख संग पुकार,सुन व्यथा अपार,
मन हुआ अधीर,हिल गया शरीर।।

आंकड़े महान,मत करो बखान,
कुछ करो विचार,हो अभी सुधार।।

देख आसमान,हो रहा बिहान,
बिन हुए उदास,तुम करो प्रयास।।

अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
मु0- मोलनागंज, पो0- चिरैयाकोट
जनपद-मऊ ( उ0 प्र0)
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निधि छन्द
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उदित रवि विहान,अनुपम छवि राम,
चरण कर विनीत,सुभग मन सुप्रीत।
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सकल जगत राम,सफल सकल काम,
हरहु ह्रदय पीर,दशरथ रघुवीर।
*******************
कमल सम कपोल,सरस मधुर बोल,
मुदित मन सुभाष,सुचित अटल आस ।
******************
हरि सुनहु पुकार,हरहु मन विकार,
शरण रख सुखान,अतुलित वरदान।
***************
प्रभु अति उदार,सकल दुख निवार,
जटिल जलधि पार,नियति जग सुधार।।
****************

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल ,
बिलासपुर
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निधि छंद

विषय -पर्यावरण


अब है भरमार, पानी लाचार,
मौसम बेकार, ठप कारोबार ।

सूरज की आस , डूबा विश्वास ,
तारों की आस, ईश्वर के पास ।

अब है ये शोर , दुख चारों ओर,
जीवों का कोन , धरती है मौन ।

जीवन है चूर , सुख भी है दूर,
पोधें बेकार , हो कब उद्धार ।

सब करते सोग, होते प्रयोग,
है पैदावार , मन में है भार ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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निधि छंद
रचना


द्वंद है अनेक ,राह सोच एक
शांत हो विचार ,मुक्ति के प्रकार

देख नव वितान ,वो नवल विवान
मोद भर निहार ,जीव हर निसार।

प्रेम का विहार ,है नवल प्रकार
मीत मन लुभाय ,प्रीत तन समाय।
४,
बालमा निहार ,प्रीत की बहार
सिक्त गात लाज , लाल रंग आज ।


नैन हैं कमान ,साधते निशान
छोड़ प्रेम बाण ,नेह बोल प्राण।

ललिता गहलोत

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निधि छंद


सपना साकार , सबका अधिकार,
हो जो धन पास , दे दो सब खास।

अपनों का प्यार, सिमटा संसार,
खोता विश्वास, होता फिर आस।

साथी अनमोल, जीवन बिन मोल,
पाया तेरा साथ, भाया तेरा हाथ।

साजन अब जान, मिलता सम्मान,
जीवन में भाव, मिलता है चाव।


बोते हैं झार, कर्मों का हार,
करते जो काज, सम्मानित आज।


                                                                              विनीता सिंह "विनी"
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निधि छंद

चरणान्त लघु

मात्रिक छंद 9 मात्रा

जलधि तट विहार। उर कर मनुहार।
चपल अधर आज। स्वर सरगम साज।

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नयन सजल गीत क्षण क्षण मनमीत
हृदय विकल रिक्त दृग जल अभिषिक्त।

******************
भरत लखन राम। दशरथ गृह धाम।
विविध ललित रंग। मुदित अवध संग।

******************

दिनकर अवसान। नभ विहग विहान।
गगन अमिय अंक। नित नवल मयंक।

******************
अगणित रणधीर। बढ़ चल सब वीर।
रिपु दल कर नष्ट। सहकर सब कष्ट।
***************

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव, उत्तरप्रदेश
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निधि छंद
9 मात्रिक,अंत लघु अनिवार्य

*********
पंख को पसार, कर रहा विहार।
छू रहा अनंत, बन गया जयंत।।
***
भर गई मिठास, छोड़ कर खटास।
त्याग सब विलाप, मत करो अलाप ।।
***
ढूंढ ले वितान, फिर वही विहान।
छेड़ कुछ सुराग, बिछ गया पराग।।
***
झूमती उमंग, मन भरे तरंग।
अंग लग बहार, बन गई फुहार।।
***
कौन अब निराश, हो गया प्रकाश।
प्रेम का प्रसार, रूप पर निखार।।
स्वरचित  - राज्यश्री सिंह
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निधि छंद

*********
पंख को पसार, कर रहा विहार।
छू रहा अनंत, बन गया जयंत।।
***
भर गई मिठास, छोड़ कर खटास।
त्याग सब विलाप, मत करो अलाप ।।
***
ढूंढ ले वितान, फिर वही विहान।
छेड़ कुछ सुराग, बिछ गया पराग।।
***
झूमती उमंग, मन भरे तरंग।
अंग लग बहार, बन गई फुहार।।
***
कौन अब निराश, हो गया प्रकाश।
प्रेम का प्रसार, रूप पर निखार।।
राज्यश्री सिंह

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निधि छन्द पर आधारित गीत
🌺🌺आया गोपाल🌺🌺


(मुखड़ा)
बहना का लाल, मामा का काल।
खींचेगा खाल, आया गोपाल।।

(अन्तरा 1) 

दी कारागार, कर अत्याचार।
रक्खा बदहाल, आया गोपाल।।( टेक)
(2)
मामा था कंस, मन में था दंश।
बैरी सम्भाल, आया गोपाल।

(3)
करता था पाप, लेता था श्राप।
भेजा पाताल, आया गोपाल।


(4)
खुशियों की भोर, फैली हर ओर।
काटा जंजाल, आया गोपाल।।

रागिनी गर्ग (चुनमुन)
रामपुर (यूपी )

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Tuesday, September 24, 2019

गंग छन्द Gang Chhnda Hindi poetry

गंग छन्द


Explained By - Mr. Abhay kumar Anand ji


गंग छन्द
आंक जाति या वर्ण संज्ञा का यह ९ मात्रिक छन्द है, 
अंत में दो गुरु(२२) अनिवार्य। चार चरण दो-दो चरण समतुकांत।
 इसके ५५ भेद हो सकते हैं। 

Example-  


गंग छंद

शिव जटाओं से , शैल राहों से
माँ निकल आई , भू पटल छाई ।।

पाप हरती है , शुद्ध करती है ।
सब कहें माता , पुण्य की दाता ।।

हैं बहाते भी , देख कचरा छि:।
नालियां खोले , गंग में घोले ।।

क्षुब्ध माता भी , अरु बिधाता भी ।
जन सुधर जाओ ,होश में आओ ।।

हे अमर गंगे , पाप को पी ले ।
हम अधम पापी , देख हैं काफी ।।

नीर चंगा सा , नील गंगा का।
है नमन गंगे , हे सजल गंगे ।।

शब्दार्थ :
सजल - जल से युक्त

अभय कुमार आनंद
बिष्णुपुर बांका बिहार व लखनऊ उत्तरप्रदेश 
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छंद - गंग

९ मात्रिक,अंत दो गुरु (२ २)


सब आयु बीती, हॄद कोर रीती

घर द्वार सूना , दुख भार दूना।
पांव के छाले, ह्रदय के जाले
कैसे दिखाएं, दृग नीर आएं ।
वो एक पाती, रही बन थाती
अजानी वार्ता, एकांत श्रोता
शब्द की माया, तंज की काया
पकड़ से छूटे, ज्यूँ गरल फूटे
सुभाग हमारे, जीवन सकारे
है प्रीत छाया, सम्मान पाया।

ललिता गहलोत
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गंग छन्द

चरणान्त: दो गुरु(22)




तू है सुमाता, गंगा सुजाता।

तू पाप धोती, है कष्ट ढोती।


मैला बहाते, मैया बताते।
आत्मा भ्रमायें, काया नहायें।

सौगंध खाते, गंदा बनाते।
कैसा दिखावा! देखो छलावा।

कूड़ा विषैला, भरपूर फैला।
देखो उद्योगों, लो रोक लोगों।

धन भी लगाया, सब लूट खाया।
जब कर्म ऐसे, हो स्वच्छ कैसे?

जितेंदर पाल सिंह
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मात्रा भार;-९ मात्रिक

अंत दो गुरु(२२)

विषय;- अनजानी लड़की

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थी निबोली सी,हां सलोनी भी,
खो गई धारा ,वो कली पारा ।
आजमाना था,पास जाना था,
बात समझानाथा कसम खाना ।
तम घनेरे थे,मन न फेरे थे,
मार वो खाई,रात फिर आई।
रात पूरी थी,वो अधूरी थी,
जिंदगी खाली,विष भरी प्याली।
प्रीत जो होतीजीत वो जाती,
मौत ही पाई,फिर नदी भाई।

विनीता सिंह "विनी"✍️
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गंग छ्न्द ,,

गंग छ्न्द 9 मात्रिक छ्न्द है ,चार चरण , दो दो चरण समतुकान्त , अंत में दो गुरू 22 अनिवार्य ,




तुम मीत मेरे ,हम गीत तेरे ।
चमको सितारे ,माथे हमारे ।

चंचल हवायें ,जब गीत गायें ।
मन में रहोगे ,धुन में बहोगे ।

हम गीत गाए ,तुमको बुलाए ।
सुन लो पिया जी ,डोले जिया जी ।

काहे पुकारी ,सजनी हमारी।
काहे सताये ,मुझको बताये ।

उनको सुना के ,मन में छुपा के ।
हम गीत गाये,मन को लुभाये ।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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 गंग छंद

अंत २ गुरु

विषय -गंगा


गंगा हमारी, शिव ने उतारी
मन से पुकारो, जीवन सुधारों ।

सब पाप हरती, मन साफ करती
आत्मा जगाए, जीवन उठाए ।

धरती उगाए, वृक्ष लगाए
ज्ञानी बनाए, सब को सजाए ।

कूड़ा न डालो, कचरा निकालो
गंगा बचाओ, भारत चलाओ ।

सब बात सहती, ये मौन रहती
माँ है हमारी, चुप बेसहारी ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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गंग छंद

🌹मौन को कैसे, दर्द को ऐसे।

साथ रख जाना, आर्त स्वर माना ।।
🌹
नाव जब डोले, भेद सब खोले।
ज्ञान की बातें, तम भरी रातें।।
🌹
पार्थ मत सोचो, स्वार्थ मत खोजो।
मीन को देखो, ज्ञान से सीखो।।
🌹
साथ लाये क्या, छोड़ जाओ क्या।
विश्व छलावा, मात्र दिखावा।।
🌹
शोध है साधा, ज्ञान है आधा।
पार हो पारा, गंग की धारा।।
🌹
अरविन्द चास्टा

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गंग छंद....९ मात्रिक छंद ,अंत में दो गुरु अनिवार्य, चार चरण समतुकांत।




राखो सफाई,होगी भलाई,

सब रोग राई,पल में भगाई।


जीवन हमारा,ना हो नकारा,
पानी उबालो,खाना चबालो।

कबतक सहोगे,बीमार होगे,
बीडा उठाओ,कूड़ा हटाओ।

हो स्वस्थ काया,सब रोग ढाया,
हो प्रेरणा ये,हो धारणा ये।

संदेश ले लो ,आदेश दे दो,
धरती बचा लो,सुंदर बना लो।

सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद

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गंग छन्द




गंग छंद

अतुलित धरा है,सुरभित हवा है,
मदमय सुरा सा,कमल सम खिला सा।
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प्रियतम प्रिया हो,मधुमन हिया हो,
धड़कन समाओ,मधुरस भिगाओ।
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सरगम सुरीली,चपल मन छबीली,
सुमन महकाओ,प्रणय पथ आओ।
***************
रिमझिम सुहाना,सुरमय रिझाना,
मलयज सुप्रीता,सुखमय पुनीता।।
***************
कुछ गुनगुनाओ,सुरमय सुनाओ,
सुखद पुरवाई,मुदित मन भाई।।
***************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर

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गंग छन्द 

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तुम पास आओ,मत दूर जाओ,
हम हैं तुम्हारे,तुम हो हमारे।।

मन की उदासी,तुम प्रीत प्यासी,
मुझको संभालो,अपना बना लो।।

दिन- रात सोचूं ,चहुँ ओर ढूंढूं ,
सुन लो जहाँ हो,कह दो कहाँ हो।।

सुख चैन खोया,अखियाँ भिगोया,
अब मान जाओ,मत यूँ सताओ।।

भय को मिटा दो,जग को बता दो,
दुख से लड़ेंगे,मिल के रहेंगे।।

अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"

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गंग छंद ,मात्रिक भार-९ , चरणांत २२

पूस की रातें ,बेतुकी बातें।
मित्र की मस्ती, प्रेम की बस्ती।।

कहती कहानी,दादी व नानी।
आम के झूले,भुला न भूले।।

माटी घरौंदें,ओस की बूँदें।
पेड़ की छाया,गाँव की माया।।

बचपन सुहाना,किस्सा पुराना।
फिर याद आये,मुझको सताये।।

नदिया पुकारे,पनघट निहारे।
फिर गीत गाओ,अब लौट आओ।।

आयुष कश्यप
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गंग छन्द



किसलय कली थी ,मधुमय पली थी।

भ्रमर दल आये। ,कुसुम पर छाये।


* * * * * * * * * *


रिमझिम फुहारें। प्रियवर पुकारें।
नयन सुख प्यारा। विकल मन हारा।
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प्रियतम प्रिया मैं ,रघुबर सिया मैं।
धड़कन बसी हूँ। मधुकर खुशी हूँ।

* ***************
सतत अठखेली।,दृग बन सहेली।
अधर सकुचाते।, नयन बल खाते।

***************
नद तट खड़ी थी।, दुखमय घड़ी थी।
नयन बह हारे। ,सुधबुध बिसारे।

****************

स्वरचित - गीता गुप्ता 'मन'

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गंग छंद


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यह रात रीती, हर बात बीती।
कह ना सकी जो, सहती गई वो।
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ठहरा न कोई, खुद में न खोई।
सुख खोजना है, दुख रोकना है।
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सह ना सकी जो, कह ना सकी वो।
चलना भला था, थमना नहीं था।
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चुप सी लगी थी, नम सी खड़ी थी।
कुछ तो हुआ था, दिल रो रहा था।
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दुख से किनारा, सुख का सहारा।
बनना अभी है, रुकना नहीं है।
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राज्यश्री सिंह , गुडगांव।
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गंग छन्द

मानस खिलौना। खेलत सलोना।
जीवन चलाऐ। नाच नचवाऐ।।

अवगुण निवारो । नाम उर धारो।
कंट कट जाऐं। रोग मिट जाऐं।।

भूमि पर आऐ। मनुज तन पाऐ।
प्रभु मत बिसारो। प्रेम सुँ पुकारो।।

बैर सब धोलो। प्रीत मन घोलो।
मीत बन जाओ। गीत मिल गाओ।।

कटुक मत बोलो। बोल हर तोलो।
रीत अपनाओ। जीत हिय लाओ
।।

रागिनी गर्ग , रामपुर (यूपी )