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सुगति सप्त मात्रिक छंद है, इसे शुभगति छन्द भी कहते हैं।
इसकी वर्ग संज्ञा लौकिक है।
इसके हर चरण में सात मात्राएँ तथा चरणान्त में गुरु होता है।
चार चरण दो-दो चरण समतुकांत ।
इन सप्त मात्रिक छंद के 21 भेद हो सकते हैं,
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खग उड़ चला, तरणि निकला।
किरण चमकी, पवन महकी।
अनुपम छटा,बरसत घटा।
तरुवर हरे,वन सब भरे।
कलित युवती,लहर चलती।
पकड़ मटकी,अलक झटकी।
नयन कजरा,लगत बदरा।
मृदुल तन है,चपल मन है।
कहत सखियाँ,मिलत अखियाँ।
चितवत पिया,धड़कत जिया।
जितेंदर पाल सिंह
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सुगति छंद
7 मात्रिक वाचिक भार
के अनुसार
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आज मन में, हर्ष तन में ।
ले बढ़ा पग ,है बड़ा मग। 1।
🌹
हो खड़ा अब,छोड़ तम सब।
हार को ना,जीत को हाँ।2।
🌹
देख आगे,रिपु भागे।
वीर बन जा,क्रोध सह जा।3।
🌹
ये सुगति है,ये नियति है।
लिख जरा ये,सीख ले ये।4।
✍ अरविन्द चास्टा , कपासन चित्तौड़गढ़ ,राजस्थान
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सुनो सखियां,लड़ी अखियां।
बहारों में ,हजारों में ।
......
महकते हैं ,चहकते हैं ।
खिले मधुबन,मिले जो मन ।
......
कहूं क्या अब,मिले हम जब।
छुपे थे जो ,,कहां थे वो ।
.....
बुलाते हैं ,मनाते हैं।
पहाड़ों में ,किनारों में ।
सिम्पल काव्यधारा
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विषय- कृष्ण सुदामा
पैर धोये,कृष्ण रोये।
नेह श्यामा,विप्र सुदामा ।।
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दोस्त प्यारा,प्रेम न्यारा।
शूल देखे,फूल जैसे।
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भोग मांगा,मोह भागा।
लाज कीन्हा,राज दीन्हा।।
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प्रीत पाएजीत आये ।
प्रेम जीता,नैन भींगा।।
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डॉ नीरज अग्रवाल, बिलासपुर
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सन नेह से,मिल प्रेम से
प्रियतम सुनो,प्रीती गुनो।
दृग प्यार है,अंबार है।
हिय तुम बसे,बन प्राण से।
मृदु चाहना,शुचि कामना
अंतस बसी,डोरी कसी।
रहना सदा,उर की मृदा
द्युति कम न हो,मति भ्रम न हो।
नैर्मल्य हूं।,मैं धन्य हूं।
भव तू मिला,जीवन खिला।
ललिता गहलोत
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विषय - विरह
तुम मिले थे,दिल खिले थे
ये पुरानी,है कहानी।
जी न तोड़ो,बात छोड़ो
हार मेरी,जीत तेरी ।
रात बहती,साथ रहती
है सुहानी,रात रानी ।
याद आई,मन जलाई
गीत गाते,रेन बीते ।
रजिन्दर कोर (रेशू), अमृतसर
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नयन भरके,चरण धरके,
भगवन भजो,सब डर तजो।
मलिन तन में,सुजन मन में,
मिलन भर दे,जलन तर दे।
दमक बढ़ती,अगन पलती,
नरम बनके,करम करके,
भजन भजले,हवन कर ले,
भगत बनके,जनम हर ले।।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
भगवन भजो,सब डर तजो।
मलिन तन में,सुजन मन में,
मिलन भर दे,जलन तर दे।
दमक बढ़ती,अगन पलती,
नरम बनके,करम करके,
भजन भजले,हवन कर ले,
भगत बनके,जनम हर ले।।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
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बदरी हटी ,धरती फटी ,
जल भी बिके ,दुनिया लखे ।
जन सोच ले ,किस ओर रे ।।
वन कट रहे ,जल घट रहे ।
घर घर खड़ा ,पहिया बड़ा ।।
तड़पे पवन ,भरके नयन।
घुटता रहा ,सहता रहा ।।
थक कर मही ,अब अधमरी ।
अब बस करो ,अब तो डरो ।।
अभय कुमार आनंद , लखनऊ उत्तरप्रदेश
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पीर सहके,प्रीत महके,
द्वेष तज के,नैन छलके।।
शूल चुभते,पुष्प खिलते,
स्याह हरते,दीप जलते।।
सांझ ढलते,हाथ मलते,
साथ चलते,लोग छलते।।
राह ढहते,पेट गहते,
मौन रहते,भूख सहते।
सोच गहरी,चाल ठहरी,
वार कर लो,आह भर लो।।
अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
पीर सहके,प्रीत महके,
द्वेष तज के,नैन छलके।।
शूल चुभते,पुष्प खिलते,
स्याह हरते,दीप जलते।।
सांझ ढलते,हाथ मलते,
साथ चलते,लोग छलते।।
राह ढहते,पेट गहते,
मौन रहते,भूख सहते।
सोच गहरी,चाल ठहरी,
वार कर लो,आह भर लो।।
अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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हलधर खड़े,जलधर अड़े।
नयन बरसे,कृषक तरसे।
गगन हरषे,अमिय बरसे।
तमस हरता,चमक भरता।
नयन बरसे,कृषक तरसे।
गगन हरषे,अमिय बरसे।
तमस हरता,चमक भरता।
प्रथम जग में,जगत डग में।
गणपति हरे,शुभ शुभ करे।
उपवन मिला,तन मन खिला।
कुसुम कलियाँ,छमक गलियाँ।
चिर अजय हो।रण विजय हो,
तरकश भरे,रिपु दल डरे।
'मन'
सुगति छंद गीतिका
भरी गागरकभी फोड़े।
हटा कर केसभी रोड़े।
विकल जग मेंनहीं छोड़े।
मना के मुख,कभी मोड़े।
खिले तारेअभी थोड़े।
कुसुम खिलतेनहीं तोड़े।
गीता गुप्ता 'मन'
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राधे कृष्णा, राधे कृष्णा
हरे राधे,हरे राधे।
राम राजा,राम राजा
राम सीता,राम सीता।
राधे कृष्णा,राधे कृष्णा
राधे हरी,राधे हरी।
ॐ महेश्वरा,महादेवा
ॐ सदाशिवा,उमानाथा
ॐ हरि भोले,जयन्ती प्रिये।
जयति रामा,जयति रामा
जै जै रमा,जै जै रमा।
जै जै राधे,जै जै राधे
जै जै कृष्णा,जै जै कृष्णा।
नट नागरा,मन मोहना
कुन्ज बिहारी,छवि सांवरी।
नैन कजरा,तन सांवरा
केश गजरा,मोहे हियरा।
सिता रामा,भजो रामा
राधे कृष्णा,भजो कृष्णा।
स्वरचित- भजन सुगति छंद
गोपाल कृष्णा भावसार , इंदौर सुखेड़ा (म.प्र.)
हरे राधे,हरे राधे।
राम राजा,राम राजा
राम सीता,राम सीता।
राधे कृष्णा,राधे कृष्णा
राधे हरी,राधे हरी।
ॐ महेश्वरा,महादेवा
ॐ सदाशिवा,उमानाथा
ॐ हरि भोले,जयन्ती प्रिये।
जयति रामा,जयति रामा
जै जै रमा,जै जै रमा।
जै जै राधे,जै जै राधे
जै जै कृष्णा,जै जै कृष्णा।
नट नागरा,मन मोहना
कुन्ज बिहारी,छवि सांवरी।
नैन कजरा,तन सांवरा
केश गजरा,मोहे हियरा।
सिता रामा,भजो रामा
राधे कृष्णा,भजो कृष्णा।
स्वरचित- भजन सुगति छंद
गोपाल कृष्णा भावसार , इंदौर सुखेड़ा (म.प्र.)
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देखो पिया,जीवन मिला,
आधार था,अधिकार था।
उर में बसे ,संसार से,
तुम प्राण हो,मन जान हो।
पाते सभी,खाते तभी,
जग से दुखी,मन से सुखी।
इक बंदिनी,थी संगिनी,
राहें कड़ी,बेड़ी पड़ी।
गुंजित जना,हरषित मना,
सुरभित जहाँ,मिलता कहाँ।
आधार था,अधिकार था।
उर में बसे ,संसार से,
तुम प्राण हो,मन जान हो।
पाते सभी,खाते तभी,
जग से दुखी,मन से सुखी।
इक बंदिनी,थी संगिनी,
राहें कड़ी,बेड़ी पड़ी।
गुंजित जना,हरषित मना,
सुरभित जहाँ,मिलता कहाँ।
विनीता सिंह विनी
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सुगति छन्द आधारित गीत, 7 मात्र
कंटक कटे ,सब दुख मिटे,
भज राम को ,जप श्याम को,
उनसे सटे,सब दुख मिटे।
राधा कहो ,कान्हा कहो
मन से रटे,सब दुख मिटे।
कुछ पुण्य हैं ,कुछ पाप हैं ,
उनसे हटे,सब दुख मिटे।
जन्में सभी,मरते सभी,
जीवन घटे,सब दुख मिटे।
रागिनी गर्ग ,रामपुर यूपीकंटक कटे ,सब दुख मिटे,
भज राम को ,जप श्याम को,
उनसे सटे,सब दुख मिटे।
राधा कहो ,कान्हा कहो
मन से रटे,सब दुख मिटे।
कुछ पुण्य हैं ,कुछ पाप हैं ,
उनसे हटे,सब दुख मिटे।
जन्में सभी,मरते सभी,
जीवन घटे,सब दुख मिटे।
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भाव प्रेम
ओ रे पिया,धड़के जिया
धड़कन सुनो,सपने बुनो।
1
चल साथ ले,यूँ हाथ ले
देखे हमें,राहें थमें
ये क्या किया,ओ रे पिया।
2
ओ बावरे,सुन साँवरे
नाचन लगी,आशा जगी
कहता जिया,ओ रे पिया
3
तुम श्याम हो,या राम हो
मन मीत हो,तुम जीत हो
वारा हिया,ओ रे पिया।
4
है प्यार तू,संसार तू
तू गीत है,तू प्रीत है
सुन साथिया,ओ रे पिया।
रानी सोनी "परी
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सुगति छन्ददो-दो चरण समतुकांत
आस तन की,चाह मन की
बात कर ली,आह भर ली
केश काले,मेघ काले
खेत सूखा,बैल भूखा
नीर खारा,बे सहारा
पी न पाया,जी न पाया
आज मानी,तू न ज्ञानी
फेर माला,कर उजाला
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