सभी साहित्य अनुरागियों का स्वागत,
तमाल छंद पर के बारे उपलब्ध जानकारी जो की आदरणीया विनीता सिंह जी ,गौंडा उत्तर प्रदेश द्वारा साझा की गई है आप सब के लिए प्रस्तुत है।
साथ ही देश के विभिन्न साहित्यकारों द्वारा तमाल छंद के मौलिक उदाहरण।
साथ ही देश के विभिन्न साहित्यकारों द्वारा तमाल छंद के मौलिक उदाहरण।
छंद शास्त्र के अनुसार तमाल छंद महापौराणिक जाती का 19 मात्रिक छंद है। ये एक सम मात्रिक छंद है।
इसमें चार चरण होते है
इसमें चार चरण होते है
दो दो अथवा चारो चरण तुकांत होता है
चरण के अंत में गुरु लघु होना अनिवार्य है।
अर्थात 21
अन्य शब्दों में अगर चौपाई छंद में एक गुरु और एक लघु क्रम से जोड़ दिया जाय तो तमाल छंद बन जाता है।
इस छंद के लिए किसी विशेष मापनी का उल्लेख नही मिलता है ।
सुविधा के लिए निम्न मापनी प्रयोग की जा सकती है
22 22 22 22 21
2122 2122 21
1222 1222 21
2212 2212 21
इसी प्रकार पद का मात्रा विन्यास किया जा सकता है
परन्तु चारो पदों में समान मापनी उपयोग होने से छंद में निखार आता है।
उदाहरण
विभिन्न सम्माननीय साहित्यकारों द्वारा तमाल छंद के उदाहरण । ।
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1 आधार छंद : तमाल
गोकुल में गोपी जपती हरि नाम , कृष्णा गोपाला मुरलीधर श्याम ।
बंशी वाले का कर ले तू ध्यान ,कितनी थी मोहक बंशी की तान ।।
मथुरा में जन्में नटखट गोपाल ,चरणों को छू के यमुना खुशहाल
गोपी रम जाती मुरली के संग ,श्यामल सुंदर सा कान्हा का रंग ।।
राधा थी प्यारी करती थी रास ,बंशीधर करते मन में थे वास ।
मोहक मुरली की मधुमय आवाज ,सबके ही मन पे करते थे राज ।।
कान्हा की वंशी छेड़े मधु गान ,गोपी के मुख पे देखो मुस्कान।
मटकी माखन जो रखती थी रोज ,कान्हा करता था नित दिन का भोज।
अर्जुन ने जब देखा अरि निज वीर ,कृष्णा बोले साधो तुम अब तीर ।
अपना कोई होता है क्या खोज , जीना मरना चलता रहता रोज ।।
आधार छंद : तमाल नवगीत
पावन शीतल कंचन अपना प्यार । आ मिलकर दें जीवन को आकार ।।
मीठी यादों की जो दी है भेंट । मधुरिम मधुरिम आँसू बहते चार ।।
सोना चांदी की अब किसको चाह । इस रोगी का केवल तुम उपचार ।।
सोते जगते बस तेरा ही ध्यान । मैं मजनूं तू लैला का अवतार ।।
प्यासी तू है मैं हूँ तेरा नीर । तू बन पत्थर मैं तेरा जलधार ।।
अभय कुमार आनंद, बांका बिहार वलखनऊ उत्तरप्रदेश
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2 आधार छंद : तमाल
काहे रे मन डोले है दिन-रात, भज ले हरि तू पायी मानस जात।
छूटेंगे सब जिनसे लागी प्रीत, दुख जब आये छोड़ें सारे मीत।
कुंठित मन की सब तू गांठे खोल, पीड़ा मन की हर लें मीठे बोल।
बिन गुण बोलो मत यूँ झूठी बात, बदरा बिन कब बरसे बरसात।
घट-घट में बसते हैं सबके राम, बाहर ढूंढ़ो काहे तन में धाम।
पूजो हरपल जबतक चलते श्वास, नश्वर जग में झूठी है सब आस।
तुम कर्ता धर्ता तुमसे संसार, रखवाले जीवन के पालनहार।
हर लो पापों को देकर सद्बुद्धि, अपने मन की कर पाएं हम शुद्धि।
बिछड़े हैं जन्मों से हम भगवान, जग को सच्चा बैठे हैं हम मान।
तुम बंधन से माया के दो मुक्ति, सध जाए चंचल मन ये दो युक्ति।
गीतिका ,अपदान्त
आधार छन्द: तमाल
मुख से कड़ुवे मत बोलो तुम बोल, कुंदन को मत लोहे में दो तोल।
पद युग्म
कुछ दिन का है मेला ये संसार, निष्फल जाए मत जीवन अनमोल।
सबको जग में मानो अपना मीत, मन के अपने रखना तुम पट खोल।
मिट जाना है फिर क्यूँ करते दम्भ, बिक जाएगा तन माटी के मोल।
भीतर की तू सब की जाने राम, चहुँदिश भटकूँ मनवा जाए डोल।
मन साधो नित करके हरि का ध्यान, अंतर्मन बाजें अनहद के ढोल।
जितेंदर पाल सिंह
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3
बन ठन नारी आई खुशी अपार, थी वो दीवानी पिया का अधार।
फिर सुनो न कहो मेरी कही बात, कैसे लगे पिया तुमको आघात ।
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दूर गए रुठे पिया सुनो पुकार, कहते हो सब करती हूं स्वीकार।
व्याकुल पिया क्यों नही आए पास,,आई पाती था संदेश नही आस।।
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चंचल मन झलकता नही अभिमान,,इतनी खुशी मिली यही एहसान।
बहते रहते देखो अखियन नीर , क्यों मन बहका रहता जैसे धीर।
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मुरली की धुन पर नाचे हैं मोर,मोह पाश में बांध लिए चितचोर ।
मीरा विष प्याला लिए करे गान, राधा -मुरारी रचे लीला ध्यान।
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खुद चलकर माँ आये तेरे द्वार , वीणापाणि करो मेरा उद्धार ।
ले पूजा की थाल करे सम्मान, हरो अज्ञानता मिले हमको ज्ञान।।
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तमाल छंद (गीतिका )
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एक यही जीवन का दॄढ आधार । साथी द्वय मिल सपन करें साकार।।१
खुशियां तब है मिलती सच्ची जान । सहयोगी हो जब सबका व्यवहार ।।२
कुछ कदम बढाने से जीवन बीत । मानुष अगर करे शुभ सोच - विचार।।३
तन्हाई डसती है बनकर नाग। सेज विरह की कांटों की भरमार।४
खुद की सुंदरता सर्व शक्ति मान सुंदर मन से आये आप निखार।५
✍️विनीता सिंह "विनी"
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4
तुझसे लागी सजना हमको प्रीत। हारा सबकुछ पाई तुझ पर जीत।
दिल हारा तो सब हारा हे नाथ। जीवन भर अब तेरा मेरा साथ।।
अपना लोगों ने जब देखा प्यार। साचा साथी तू झूठा संसार।
देखी दोनों तरफ जगी है आग। अपने अधर सजी प्रीत लगी राग।।
नीलगगन में होती अपनी बात। अनुपम चन्दा झांके सारी रात।
करता अठखेली तारों के संग । हम दोनों को बाटें अपना रंग।।
जाऊँ मैं बलिहारी मेरे श्याम। सीता बन जाऊँ ओ मेरे राम।
मीरा सी जोगन बन गाऊँ गीत। ह्र्दय अपना हार तुझे लूँ जीत।।
नयन कटोरी में बहती जल धार। भवसागर से हो जाना है पार।
बिन तेरे जीना आया ना रास । आन बसो स्वामी मन मंदिर पास।।
गीतिका
साथी रे है तू ही मेरा प्यार। माही रे है तू सारा संसार।
तुझपे वारूँ अपना सारा नेह। तुझसे होती जीवन मैं झंकार।
मैं प्यासी हूँ तू सावन बरसात । बूंदे बनकर तुम कर दो श्रंगार।
दीवानी मैं चलती अपनी चाल। मुझ नदियां को दो बाहों का हार।
जबसे लागी साजन तुमसे प्रीत। चरणों में जीवन देख गई हार।
रानी सोनी"परी
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5
मोहे देखे प्रियतम यह है आस। उर में हो मेरे हरदम वो पास ।
तरसे ये मनवा मिलने की चाह। मोहे तड़पाए बैरन सा माह ।।
रो-रो के अखियाँ लागे है लाल। कैसे उलझा ये भावों का जाल।
मन में छुप जा बन मेरा आधार। मेरा जीवन है तुमसे साकार।।
तेरे ख़्यालों में डूबी दिन-रात। आ अब सजना सुनले मेरी बात।
आऊँ मैं करके सोलह शृंगार । हर आहट पर मन करता झंकार।।
पागल ये मन हो जाता बेहाल। कैसे बतलाऊँ मेरा ये हाल।
बस थोड़ा सा कर मुझसे तू प्यार। साँसे मेरी तुम बिन है बेकार।।
सुवर्णा परतानी , हैदराबाद
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6
राधा रानी झूला झूलें श्याम, फूलों से पूछ रहीं तेरो नाम।।
प्यासे नैना अपलक देखें राह, प्राण प्रिये तुम ही जीवन की चाह।।
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छोड़ दिया गोपी ग्वालन का गाँव, बनी विरहणी तके कदम की छाँव।।
आओ मोहन नैना तरसे, मीत, छेड़ो कान्हा ह्रदय प्रेमरस, गीत।।
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बैठी झूला झूलूँ यमुना तीर, बिन सावन बरसे नैनन से नीर।।
राधा तुम बिन आकुल व्याकुल श्याम, माखन खाने फिर आओ ब्रजधाम।।
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नाथ पधारो गोकुल हर लो पीर, बैठ कदम गोपी के लेलो चीर।।
नहि उलाहना दूँगी तुमको श्याम, पाती पाती बांचू तेरा नाम।।
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राधा मन मे कान्हा तेरो वास, आओ नाचें और रचाऐ रास।।
सूनी लागे कुंज गली की राह, कान्हा तेरी मीठी मीठी आह।।
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रचनाकार डॉ. नीरज अग्रवाल, बिलासपुर
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7
मानवता लज्जित होती है आज। लूटी जाती जब अबला की लाज।
मत करना कोई भी ऐसा काम । जग में यदि करना हो ऊंचा नाम।।
क्षण भर में बन जाती बिगड़ी बात,आंखों से जब होती है बरसात,
माँ के आंचल में जो बसता प्यार, उसपर न्योछावर जीवन सौ बार ।।
कचरे में जब भटका करती भूख,आंखों का भी पानी जाता सूख,
ऐसे बच्चों की सुधि लेता कौन,ये जग सारा रहता केवल मौन।।
जीवन में तू पीछे मुड़कर देख,होकर रहता विधना का हर लेख,
तेरा मेरा का चक्कर मत पाल,तज दे अबसे हर निज सुख की चाल।।
कैसा जग ये कैसी जग की रीत,चहुँ दिश देखो रूदन करती प्रीत,
मानव का ये जीवन है अनमोल,आओ मिलकर बोलें मीठे बोल।।
अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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8
बिखरे मोती अम्बर में है रात,चन्दा लायें तारों की बारात।
झिलमिल झिलमिल दीपक जलते नित्य, संध्या के आँगन शीतल आदित्य।
भागे तारें बीती है जब रात,प्राची हुलसिल चमके सारे पात।
भँवरे करते गुंजन चारों ओर,कोकिल गाती सुर में नाचें मोर।
अपनी भाषा हिन्दी है अभिमान,करना होगा हिन्दी का सम्मान।
अक्षर अक्षर माँ है देती स्नेह,हिन्दी सबसे प्यारी है निज गेह।
धरती सहती सिर पर कितना भार,अविरल बहती रहती सरिता धार।
ऊँचे पर्वत झुकता ना ये शीश।तरुवर झुक झुक देते नित आशी
गिरधारी बनवारी राधेश्याम,रटती है रसना नित तेरा नाम।
मोहनि सूरत श्यामल तेरा अंग,मनहर शोभा बलदाऊ के संग।
गीता गुप्ता 'मन'
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9
नयन मिलाकर बांध प्रीत की डोर । खोजूं बावरी कहां गया चितचोर ।
प्रीत डगर में पीर सघन है कंत । इक बियाबान विरह न जिसका अंत। 1 ।
पथ मैं तकती आओ साजन आज । तुम बिन सूने अभिव्यक्ति के काज।
निशा नाग और आग सम है भोर । गीत गान सब अब तो लगते शोर। 2 ।
तंज सभी सहकर भी थी मैं मौन ।रही जानती दुख समझेगा कौन।
पीर के सागर नित करती विहार।आँसू आँखों में विराजे अपार ।3।
बड़ी जटिल है प्रेम राह की रीत ।बुझा ज्वाल हिय की मेरे मनमीत।
नीर भरे दृग आस सजाए द्वार ।प्रणय मिलन के सपने हों साकार।4।
कठिन डगर में चुभते ही हैं शूल ।नहीं भाग्य में होते सबके फूल ।
जीवन में रखते धीरज जो लोग।लगे व्यर्थ उनको जग के सब भोग।5।
छंद - तमाल पर आधारित गीतिका
विधान - १९ मात्रा, चौपाई +गा ल
समांत - आर
नित्य नैन में सपने लें आकार । नहीं सत्य होता सबका आधार।१।
करें सभी हंसकर अभिवादन लोग। ऐसा मधुर रखें अपना व्यवहार ।२।
समझ नही पाते जब मन के भाव । जीवन पथ तब जाता बन अंगार।।३
सकारात्मक अभिगम अगर लें मान । होता आशा का प्रतिपल संचार।।४।
तूलिका बरसाती भाव की बूंद । खिले हरित हो रचना का संसार ।५।
प्रियजन विशेष से जब होती भेंट । प्रस्फुट होते ह्रदय बसे उदगार। ६।
सौहार्द सहयोग का हो उत्साह। सत्य रूप में होता वह त्योहार।७।
ललिता गहलोत
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10
1
तमाल छंद 19 मात्रिक अंत गुरु लघु
चैत्र
चैत्र मासे हो नवल पल्लव राह,खिल रही डाली रजनीगन्धा वाह।
चढ़ रही रंगीन वासन्ती गन्ध,देख मन ललचे पलासी सुगन्ध।।
वैसाख
जब चले वैसाख पतझड़ अनुराग, गूंज भोंरो की तलाशे वन बाग।
सूख फेली शूल बिखरे चहुओर,शांत बैठे पर्वतो के सिर मोर ।।
जेष्ठ
जेष्ठ मासे ताप भीषण आघात,कण्ठ सूखे सहते तापाघात ।
जीव सारे भटकते जल की खोज,ये दशाएँ बन रही पल पल रोज।।
आषाढ
आस आषाढे जगे कब बरसात,पीव घर आये प्रतीक्षा दिनरात।
कूक चातक मोर निरखे आकाश,इंद्र देवा आर्त सुन मेटे प्यास।।
सावन
देख सावन मास बरसे दिन रात ,साजना घर पाय सुहागन है रात ।
डाल पर झूले पड़े सखियाँ चार ,हर्ष पाले चुटकियाँ भरती प्यार ।।
भाद्रपद
भाद्रपद आये प्रगट जसुमति लाल,दस दिवस धूम गणपति सब भाल ।
लिख रहा षठ मास लेखन उद्धार, नमन मेरा शारदा हो स्वीकार ।।
अरविन्द चास्टा , कपासन चित्तौड़गढ़ ,राजस्थान
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चलते रहना गिरधर मेरे साथ,गिरने मत दो पकड़ो मेरा हाथ ।
तेरे दर पर लेकर आये आस ,करना मोहन मेरे मन में वास ।
....
आये हैं हम लेकर तेरा नाम ,पूरण कर दो मेरे सारे काम।
मोहन तेरी सुन के मुरली तान,राधा नाचे मीरा गाये गान ।
......
आओ गोपी नाचे हम सब आज,रंगो तन मन मोहन के मन आज।
भजते रहते बंसी धर का नाम ,वो ही मीरा राधा है घनश्याम।
सिम्पल काव्यधारा
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मन से देखो सब है कितने दूर ,अपनो से सब नाते है अब चूर,
मन से सब रहते है यूँ लाचार ,सब के मन है अब ऐसे बीमार ।
तुम से मिलने की है हरदम आसमन में है बस ये ही तो अब प्यास
मिल जाओ गर तुम जीवन में यारकर लूँ मैं जी भर के अब की प्यार ।
बाते करना हो जाता बेकारमन यूँ होता जीवन में लाचार
कितना भी तुम कर लो खुदपर मानरहता कब है अंदर ये अभिमान ।
मन करता हर पल अब देखो शोरहोगी अब जाने कब मन में भोर
रहती है अब हर पल ये ही आसदेखो रूकती है मेरी ये सांस ।
जीवन की ये ही होती है रीतमन से करना सब को अपना मीत
खोलोगे जब दिल के सारे तारमन से उतरेगा तब ही यह भार ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
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तमाल छन्द। गीत
माता रानी!विनती सुन लो आज,पूरण कर दो मेरे सारे काज।
हे जगजननी! सर पर रख दो हाथ,अब मुझको दो मैया अपना साथ।
तेरे चरणों में हैं चारो धाम,जग है झूठा, सच्चा तेरा नाम।
दुष्टों पर करती हो माते राज,माता रानी !विनती सुन लो आज
सारे जग का करतीं बेड़ा पारहै मेरी नैया माता मझधार।
काली, चण्डी,चिन्तापूर्णी मात,दे-दो मुझको खुशियों की सौगात।
मैं दुखियारी देती हूँ आवाज,माता रानी! विनती सुन लो आज।
लेकर आओ माता अपना शेर,हर लो पापों को क्यूँ करतीं देर।
दानव ,दैत्यों का कर दो संहार,कर दो माता खुश सारा संसार।
पापी करते पापों का आगाज,माता रानी! विनती सुन लो आज।
तेरी महिमा माता अपरम्पार,सुनती हो माँ सबकी करुण पुकार।
हम सब आऐ लेने तुमसे भीख ,दे-दो माता सच्ची-अच्छी सीख
रख लो सारे भक्तों की माँ लाज,माता रानी विनती सुन लो आज।
रागिनी गर्ग रामपुर यूपी
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तमाल छन्द
मुखड़ा
चन्दा रे चन्दा सुन मन की बात।
कहना सजना से सूनी ये रात।
अंतरा 1
कैसे बीते सावन मेरे मीत।
सूने नैना करते है बरसात।......1
अंतरा। 2
जन्मों का ये बंधन कर स्वीकार,
तेरे सँग लिए फेरे मैंने सात।.......2
अंतरा 3
कौयल गुमसुम बैठी अमवा डार,
मन की पीड़ा को कर बैठी ज्ञात।....3
अंतरा। 4
कितना तम छाया है चारों और।
तेरे आने से होगी सुप्रभात।.......4
रानी सोनी"परी
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तमाल छन्द। गीत
माता रानी!विनती सुन लो आज,पूरण कर दो मेरे सारे काज।
हे जगजननी! सर पर रख दो हाथ,अब मुझको दो मैया अपना साथ।
तेरे चरणों में हैं चारो धाम,जग है झूठा, सच्चा तेरा नाम।
दुष्टों पर करती हो माते राज,माता रानी !विनती सुन लो आज
सारे जग का करतीं बेड़ा पारहै मेरी नैया माता मझधार।
काली, चण्डी,चिन्तापूर्णी मात,दे-दो मुझको खुशियों की सौगात।
मैं दुखियारी देती हूँ आवाज,माता रानी! विनती सुन लो आज।
लेकर आओ माता अपना शेर,हर लो पापों को क्यूँ करतीं देर।
दानव ,दैत्यों का कर दो संहार,कर दो माता खुश सारा संसार।
पापी करते पापों का आगाज,माता रानी! विनती सुन लो आज।
तेरी महिमा माता अपरम्पार,सुनती हो माँ सबकी करुण पुकार।
हम सब आऐ लेने तुमसे भीख ,दे-दो माता सच्ची-अच्छी सीख
रख लो सारे भक्तों की माँ लाज,माता रानी विनती सुन लो आज।
रागिनी गर्ग रामपुर यूपी
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तमाल छन्द
मुखड़ा
चन्दा रे चन्दा सुन मन की बात।
कहना सजना से सूनी ये रात।
अंतरा 1
कैसे बीते सावन मेरे मीत।
सूने नैना करते है बरसात।......1
अंतरा। 2
जन्मों का ये बंधन कर स्वीकार,
तेरे सँग लिए फेरे मैंने सात।.......2
अंतरा 3
कौयल गुमसुम बैठी अमवा डार,
मन की पीड़ा को कर बैठी ज्ञात।....3
अंतरा। 4
कितना तम छाया है चारों और।
तेरे आने से होगी सुप्रभात।.......4
रानी सोनी"परी
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वाहः अद्भुत जानकारी। तमाल छंद पर एक साथ इतनी रचना वाकई छंद लेखन में मील का पत्थर सावित होगा। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
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