Explained By Smt. Suvrna Partani ji - Hyderabad
स्नेहिल सादर नमन साहित्य अनुरागी और मेरे समस्त प्यारे साथियों 🙏
आज सीखने और सिखाने के अंतर्गत मैं आपकी दोस्त सुवर्णा परतानी एक नया छंद लेकर आपके समक्ष आयी हूँ।
विश्व में फैली महा आपदा से हमें डटकर मुक़ाबला करना है ,हमें डरना नहीं है बस कुछ ज़रूरी सावधानी का पालन सख़्ती से करना होगा।
घर में रहकर देश का साथ दे और अपनी लेखनी की धार को भी साथ में तीक्ष्ण बनाए।
स्वस्थ रहे और मस्त रहे ।
तो चलते है नए छंद की ओर .......
ये छंद महाभागवत जाती का छंद है,
ये 26 मात्रिक छंद है,
#गीता_छंद
14,12 पर यति
पदांत 21 (गुरु लघु)
अनिवार्य है।
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत लिए जा सकते है।
उदाहरण
कृष्णारजुन गीता भुवन,
रवि सम प्रगट सानन्द।
जाके सुने नर पावहीं,
संतत अमित आनन्द।।
दुहूँ लोक में कल्याण कर,
यह मेट भव को शूल।
तातें कहौ प्यारे कबौ,
उपदेश हरि ना भूल।।
- छंद शास्त्र
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ये छंद महाभागवत जाती का छंद है,
ये 26 मात्रिक छंद है,
14,12 पर यति
पदांत 21 (गुरु लघु)
अनिवार्य है।
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत
ये छंद महाभागवत जाती का छंद है,
ये 26 मात्रिक छंद है,
14,12 पर यति
पदांत 21 (गुरु लघु)
अनिवार्य है।
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत
2122 2122, 2122 221
आज विपदा आ पड़ी है, मृत्यु का फैला जाल।
त्रस्त सारे लोग अब हैं, काल ने पलटी चाल।
बंध जाए साँस सारी,होय जीवन दुश्वार।
दी प्रकृति ने आज शिक्षा, बच न पाये संसार।।१।।
है करे कोई भरे सब,था पड़ोसी का वार।
वो अमानुष बन गया था, अरु करीं हद सब पार।
साँप,चमगादड़, छछूंदर, ये इन्हीं के आहार।
ईश भी है क्रोध में अब,जो नहीं था स्वीकार।।२।।
देख कोरोना बढ़ा है,जो बिगाड़े हालात।
पार ये अवरोध कर के,फैलता ये दिन रात।
जल्द कोरोना मिटेगा ,हो कभी ये लाचार।
ध्यान रखना बात का यह, अब नहीं हो विस्तार।।३।।
आपसी दूरी रखें अब, लीजिये मुख रूमाल।
इक कदम घर से न बाहर,तब थमेगा भूचाल।
धैर्य संयम नित्य रखिये, थामना हो आसान।
कुछ दिनों की बात है बस, फिर खिलेगी मुस्कान।।४।।
✍️सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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गीता छन्द (२६ मात्रिक)
14-12 पर यति चरणान्त 21 अनिवार्य
दो-दो चरण समतुकांत
काव्य जगत में भी देखो,छल-कपट ताबड़तोड़।
अपना हित सब साध रहे ,एक दूजे को फोड़।।
काव्य ज्ञान ही साधक का,पथ है सुनो आनंद।
उस पथ चल कविजन पाते,अनुभूति परमानंद।
घृणा भाव जब तीर चले, क्या वीरों का कर्म नेक।
उस भाव भँवर जो उलझा,प्रश्नचिन्ह बना विवेक।
देखो रचे जो छंद है, सब पीड़ा हरे वो पीर।
बहता चले पाषाण पथ,दे ताकि निर्मल नीर।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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गीता छ्न्द
महाभागवत जाती का छ्न्द
26 मात्रा ,14,12 पर यति , पदांत 21 (गुरु लघु) अनिवार्य।
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देखो कैसी कठिन घड़ी , बैठे सभी लाचार।
देख मौत सामने खड़ी ,अन्दर भूख की मार।
....
जीवन में सुख - दुख मिलता , बन जाओ धीर वान ।
फिर सुख का पल आएगा, होगा तभी कल्याण।
......
सृष्टि देख विकराल बनी , मानव के लिए काल ।
कलयुग बदले नवयुग में , जय- जय हो महाकाल।
.......
व्यर्थ की चिंता छोड़ कर , अब प्रकृति को पहचान।
हाथ जोड़ कर मांँगो सब , भोले से क्षमा दान।
.......
द्वेष ईर्ष्या छोड़ कर के ,भजते रहो श्रीकंत ।
सबको सन्मति देते हैं , गदाधारी हनुमंत।
.......
कमलनयन हरि जाप करो , सत्य ही हो आधार।
हिंसा पाप को त्याग कर , संस्कृति करो स्वीकार।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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गीता_छंद (26 मात्रिक)
महाभागवति जाति
14,12 पर यति
पदांत 21 (गुरु लघु)
अनिवार्य है।
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत ।
मापनी - 2212 2212 2212 221
रचना
विश्वास ही तो प्रेम का, होता बड़ा आधार,
टूटे अगर विश्वास तो, उसका नहीं उपचार।
मन में किसी के प्रेम का, रचना तभी संसार,
सच्चा बने सम्बन्ध वो, बस प्यार ही बस प्यार।
होती सुखद अनुभूति है, कहते जिसे हैं प्यार,
देखा नहीं भगवान को, फिर भी करें सत्कार।
भीतर बसा दिखता नहीं, बाहर खुले हैं द्वार,
भगवान के ही नाम पर, चलता दिखा व्यापार।
कलयुग प्रभावित कर रहा, हर ओर अत्याचार,
माँ-बाप वृद्धाश्रम गए, सन्तान का आचार।
बहु सास के झगड़े दिखें, छलपूर्ण दुर्व्यवहार,
भाई दिखे लड़ते हुए, टूटे हुए घरबार।
सब स्वार्थ लालच से भरे, अच्छे नहीं संस्कार,
सद्बुद्धि वाले कम दिखें, सबसे करें जो प्यार।
कोमल हृदय सद्भावना, विस्मृति नहीं सुविचार,
ईश्वर करे उन पर कृपा, सपने करे साकार।
कवि के कथन कटु काव्य में, सच्ची करी है बात,
चंचल चतुर मन चोर है, सोचे सदा उत्पात।
मन वश कभी करता नहीं, मन से गया है हार,
दुर्लभ मनुज का तन मिला, बिन गुरु नहीं उद्धार।
जितेंदर पाल सिंह
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#गीता _छन्द (महाभागवत जाति)
26 मात्रिक 14,12 पर यति
पदान्त 21 (गुरु लघु) अनिवार्य
दो दो अथवा चारो चरण समतुकांत लिए जा सकते हैं।
शीर्षक:- रणभूमि
रणभूमि धरे धनुष धरा,
अर्जुन लखे यदुराज,
ज्येष्ठ भ्राता सह अनुज हैं,सारे युद्ध मे आज,
कैसे वध कर दूँ बोलो ,केशव ! कठिन है काम,
ह्रदय व्यथित युद्धभूमि में,होगा बुरा परिणाम।
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भीष्म पितामह प्राण बसे,
गुरु द्रोण ह्रदय समान,
पिता सदृश हैं विदुर जी,किस किस का कहूँ नाम,
हे! माधव स्वीकार हार, पीड़ा नही स्वीकार,
क्षमा करो हरि क्षमा दो,द्वंद्व लगे बेकार।
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उठो धनुर्धर ! संशय तज,त्यागो ह्रदय संताप,
अति का भला ही वेदना, सहना पीर भी पाप,
बज उठी समर रणभेरी ,
गूँजा है शंखनाद,
धर्म युद्ध का संकट है, ह्रदय का हरो विषाद।
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पार्थ! निभाओ राज धर्म,मोह का बंधन छोड़,
स्थिर मन से युद्धनीति का, जगा जो क्रन्दन तोड़,
कूटनीति ही पनपेगी,
बदलेगी राजनीति,
सत्य धर्म कर्म मिटेगा,जब बिखरेगी कुरीति।
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सृजनकारी नूतन नियति, मन बन्धन निराधार,
काया वसन है प्राण का,तन बदले कई बार,
जनम मरण विधिना हाथों, वर्ष माह और काल,
अर्जुन! ठहरते दिन नही,युग बदले सदा चाल।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)
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