जय माँ शारदा
सभी गुणीजनों को सादर वन्दन
छंद लेखन श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज पुनः मात्रिक छंद प्रस्तुत है।
छंद - मरहटा माधवी छंद
जाती - महायौगिक
29 मात्रिक छंद
चार चरण , प्रतिचरण 29 मात्रा ,
क्रमशः 11 -8-10 मात्रा पर यति,
पदांत लघु गुरु अनिवार्य,
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत ।
आइये नव छंद सृजन करें।
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उदाहरण - स्वरचित
#मरहटा_माधवी छंद
बहती है जलधार ,
खुले उद्गार,
हर्ष को थामना।
ज्यों वीणा के तार,
बजे हर बार
गीत की कामना।।
तुम ही मेरा राग,
तु ही वैराग,
तुम्हें खोजूँ कहाँ।
मन का ये अनुराग ,
संगम प्रयाग,
सजे सुरतां जहाँ।।
अरविंद चास्टा "अविराज"
कपासन चित्तोड़गढ़। राज।
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जय माँ शारदा
सभी गुणीजनों को सादर वन्दन
छंद - मरहटा माधवी छंद
जाती - महायौगिक
29 मात्रिक छंद
चार चरण , प्रतिचरण 29 मात्रा ,
क्रमशः 11 -8-10 मात्रा पर यति,
पदांत लघु गुरु अनिवार्य,
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत ।
(१)
सत्यं शिव ओंकार
जय जय कारा
जपता जग सारा।
मनवा करे पुकार
मीत मनुहार
जपुँ नाम तिहारा।
(२)
काव्य मधुर रसधार
साहित्य सार
लेखनी लिख रही ।
छंदों से श्रृंगार
स्वर अलंकार
प्रेयसी दिख रही।।
(३)
मंजुल मनभावना
प्रीतम पावन
नित करूं मनुहार।
पिया हृदय चाहना
प्रेम प्रणय की
प्रेमी की पुकार।
(४)
हाय!नटखट कान्हा
मटकी फोड़े
सुरसरि के तीरे।
मदन रैन सताए
चैन चुराए
सखि धीरे धीरे।
नीलम शर्मा
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नमन माँ शारदे
मरहटा माधवी छंद
राम के परम भक्त
भक्ति आसक्त
वीर हनुमान हैं।
स्वयं ही शूर वीर
धीर गम्भीर
धरें हरि ध्यान हैं।
हरि चरण रखें शीश
महान कपीश
गुणों की खान हैं।
नमन रुद्रावतार
करो स्वीकार
आप दयावान हैं।
स्वरचित
डॉ पूजा मिश्र 'आशना'
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जाति - महायौगिक
29 मात्रिक छंद
चार चरण , प्रतिचरण 29 मात्रा ,
क्रमशः 11 -8-10 मात्रा पर यति,
पदांत लघु गुरु अनिवार्य,
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत ।
शीर्षक:- काले मेह
मोहन यमुना तीर,
चुराए चीर,
श्याम सखि बावरे।
यमुना गहरा नीर,
श्याम दो चीर!
सुनो ! हरि साँवरे।।
मुरली अधर पुनीत,
सुखद मन प्रीत,
शुभित सखि राधिका।
गूँजे पावन गीत,
मधुर संगीत,
शुचित मन साधिका।।
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बरसे काले मेह,
नैन भर नेह,
चमकती दामिनी।
भीगी भीगी देह,
अमिय मन गेह,
बसी उर वामिनी।।
सघन मेघ घनघोर,
घिरे चहुँ ओर,
घटा की कालिमा।
तमस भरी है भोर,
क्षितिज के छोर,
छुपी नभ लालिमा।।
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मोहन माणिक माल,
तिलक शुभि भाल,
मधुर मन मोहनी।
झूमे श्वेत मराल,
शुभित सुर ताल,
छवि लगे सोहनी।
गाओ पावस गीत,
ह्रदय धरि प्रीत,
मदन मन झूमते।
सावन की शुभि रीत,
पिया मन मीत,
गगन मुख चूमते।।
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आओ यमुना तीर,
हरो हरि पीर,
पुकारे राधिका।
नयन बहे सखि नीर,
खाओ प्रभु क्षीर,
कहे शुचि साधिका।
माखन मोदक साथ,
लिए सखि हाथ,
प्रभू मृदु खाइए,
राह निहारूँ नाथ,
झुकाऊँ माथ,
कभी ब्रज आइए।।
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वृन्दावन सुख धाम,
कृष्ण शुचि नाम,
मुखर मन राजते।
मधुसूदन शुचि श्याम,
नयन अभिराम,
ह्रदय सखि साजते।।
नीरज मन गोपाल,
कृष्ण यदुलाल,
रचाते रास है।
यशुदा के प्रिय लाल,
मदन गोपाल,
ह्रदय के पास हैं।
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स्वरचित
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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