छवि छंद:
Explained By - Mr. Jitender Pal Singh ji Lucknow.
छवि छंद:
यह अष्ट मात्रिक छन्द है,
इसे मधुभार छन्द भी कहते हैं।
यह वासव वर्ण संज्ञा या जाति का छन्द है।
चार चरण दो परस्पर समतुकांत।
इन अष्ट मात्रिक छंदों के ३४ भेद सम्भव हैं।
यदि अंत में जगण (121) को अनिवार्य करें।
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Example
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छवि छन्द
अष्टमात्रिक
सुन मन पुकार, प्रियतम निहार।
अब मिलन चाह, मन विरह आह।
करत हम प्यार, विनय मनुहार।
सुन सरल बैन, तरस रख नैन।
बिन तुम उदास, रख चरण पास।
सुधि-बुधि सँवार, कर कुछ विचार।
उपवन विहार, रिम-झिम फुहार।
तुम बिन बहार, सब सम अँगार।
रख कर सुप्रीत, कलित मनमीत।
लगन भरपूर, तुम बहुत दूर।
जितेंदर पाल सिंह
🌹
सुर राज आप, हो नित्य जाप।
करते पुकार, पल पल निहार।।
🌹
हो जीत आज, सब सार काज।
करके सुवास , नव दीप आस।।
🌹
मधवा उदार, जन जन दुलार।
कहते शचीश, हो मित्र कपीश।।
🌹
हो नृत्य रास, तव निज निवास।
गन्धर्व उबार, छाई बहार।।
🌹
छवि इंद्र देव, नव रत्न सेव।
वासव गृहीत, नव छंद लिखित।।
🌹
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Example
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छवि छन्द
अष्टमात्रिक
सुन मन पुकार, प्रियतम निहार।
अब मिलन चाह, मन विरह आह।
करत हम प्यार, विनय मनुहार।
सुन सरल बैन, तरस रख नैन।
बिन तुम उदास, रख चरण पास।
सुधि-बुधि सँवार, कर कुछ विचार।
उपवन विहार, रिम-झिम फुहार।
तुम बिन बहार, सब सम अँगार।
रख कर सुप्रीत, कलित मनमीत।
लगन भरपूर, तुम बहुत दूर।
जितेंदर पाल सिंह
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छवि छंद 8 मात्रिक🌹
सुर राज आप, हो नित्य जाप।
करते पुकार, पल पल निहार।।
🌹
हो जीत आज, सब सार काज।
करके सुवास , नव दीप आस।।
🌹
मधवा उदार, जन जन दुलार।
कहते शचीश, हो मित्र कपीश।।
🌹
हो नृत्य रास, तव निज निवास।
गन्धर्व उबार, छाई बहार।।
🌹
छवि इंद्र देव, नव रत्न सेव।
वासव गृहीत, नव छंद लिखित।।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा , कपासन चित्तौड़गढ़ राजस्थान
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छवि छंद
अष्ट मात्रिक छंद,चार चरण,दो परस्पर समतुकांत,
बेटी कमान, होती सुजान,
मन है विशाल, करती निहाल।
ऐसी महान, लेती उड़ान,
लागे गुलाब, प्यारी किताब।
छाए बहार, गाए मल्हार,
मन से उदार, पाए दुलार।
मुश्किल सवाल, पल में उछाल,
ठंडी फुहार, प्यारी गुहार।
होता बवाल, जाय ससुराल,
कैसा विधान, होये प्रदान।
छवि छंद
अष्ट मात्रिक छंद,चार चरण,दो परस्पर समतुकांत,
बेटी कमान, होती सुजान,
मन है विशाल, करती निहाल।
ऐसी महान, लेती उड़ान,
लागे गुलाब, प्यारी किताब।
छाए बहार, गाए मल्हार,
मन से उदार, पाए दुलार।
मुश्किल सवाल, पल में उछाल,
ठंडी फुहार, प्यारी गुहार।
होता बवाल, जाय ससुराल,
कैसा विधान, होये प्रदान।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
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छवि छंद.
अष्ट मात्रिक , चार चरण, दो परस्पर
समतुकांत
भक्ति रस
भगवान पास,दिखलाय आस
तू ही उबार,ले आ बहार ।
समझाय नाथ,बतलाय साथ
हर दम दुलार, हो जाय प्यार ।
हो सरल राह,तुम संग चाह
हर दम आय,पल पल सहाय।
मन में निवास,जग से उदास
ऐसा विचार,जीवन सँवार ।
समझाय आप,बतलाय जाप
हम संग कौन,हर कोइ मौन ।
अष्ट मात्रिक , चार चरण, दो परस्पर
समतुकांत
भक्ति रस
भगवान पास,दिखलाय आस
तू ही उबार,ले आ बहार ।
समझाय नाथ,बतलाय साथ
हर दम दुलार, हो जाय प्यार ।
हो सरल राह,तुम संग चाह
हर दम आय,पल पल सहाय।
मन में निवास,जग से उदास
ऐसा विचार,जीवन सँवार ।
समझाय आप,बतलाय जाप
हम संग कौन,हर कोइ मौन ।
रजिन्दर कोर (रेशू), अमृतसर
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छवि छंद
अष्ट मात्रिक ,चार चरण,दो परस्पर समतुकांत
जीवन महान ,देदीप्यमान ।
घर या मकान ,है तुच्छ मान ।।
भज राम - नाम ,तन तार चाम ।
तज लोभ -काम,भज राम -राम ।।
सब एक जान ,हैं एक प्राण ।
जीवन उबार ,प्रभु को पुकार ।।
यह राज -पाट ,यह ठाट - बाट ।
जाता न साथ ,आता न हाथ ।।
निज जन्म तार ,दिन मात्र चार ।
मत हो निराश ,तू बन प्रकाश ।।
अष्ट मात्रिक ,चार चरण,दो परस्पर समतुकांत
जीवन महान ,देदीप्यमान ।
घर या मकान ,है तुच्छ मान ।।
भज राम - नाम ,तन तार चाम ।
तज लोभ -काम,भज राम -राम ।।
सब एक जान ,हैं एक प्राण ।
जीवन उबार ,प्रभु को पुकार ।।
यह राज -पाट ,यह ठाट - बाट ।
जाता न साथ ,आता न हाथ ।।
निज जन्म तार ,दिन मात्र चार ।
मत हो निराश ,तू बन प्रकाश ।।
अभय कुमार आनंद, लखनऊ उत्तरप्रदेश
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छवि छंद
अष्ट मात्रिक
चलती बयार, पड़ती फुहार।
संगीत मेह, आकाश नेह।।
आराध्य देव, है सत्य मेव।
भारत महान, करते बखान ।।
है राह शूल, करना न भूल।
इक प्यार छांव, उस पार गांव।।
चाहत अपार, शुचि नेह धार।
मम गेह आज, रहे प्रीत काज।।
रतनार धूप, कचनार रूप।
यौवन निखार, जीवन बहार।।
अष्ट मात्रिक
चलती बयार, पड़ती फुहार।
संगीत मेह, आकाश नेह।।
आराध्य देव, है सत्य मेव।
भारत महान, करते बखान ।।
है राह शूल, करना न भूल।
इक प्यार छांव, उस पार गांव।।
चाहत अपार, शुचि नेह धार।
मम गेह आज, रहे प्रीत काज।।
रतनार धूप, कचनार रूप।
यौवन निखार, जीवन बहार।।
ललिता गहलोत
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छवि छन्द-(मधुभार छन्द)
अष्ट मात्रिक
अंत- जगण 121
रिमझिम फुहार,पल पल बहार,
सलिल सुर ताल,पवन कर ताल।।
*****************
गरज घन घोर,गगन कर शोर,
मगन मन मोर,सजन चित चोर।।
***************
नयन रस धार,प्रणय सुख सार,
अधर मधु पान,मुदित मन मान।।
***************
मिलन मन आस,मदन मधुमास,
मगन मन प्रीत,सजन अब जीत।।
***************
कमल सम गात,मधुर बरसात,
पलक झुक चूम,मुखर मन झूम।।
*************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)
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छवि छंद-( मधु भार छंद)
अष्ट मात्रिक छंद
चार चरण दो- दो समतुकांत
--------------///--------------
१)कितने उदास, है आसपास,
धरती चक्रांत, जल मग्न प्रांत।
२)माया लगी न, काया जगी न,
आकाश नाश, है काल- पाश।
३)करती सनेह, पाती अनेह,
करती पुकार, सहती फुकार।
४) देखो सिद्धांत, उसका दुखांत,
चातक प्रमेह, घातक सनेह।
५)जीवन उचाट पाई निशाट,
निरलिप्त भाव, चिंता लगाव ।
विनीता सिंह "विनी"
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छवि छ्न्द ---यह अष्ट मात्रिक छ्न्द है ,इसे मधुभार छ्न्द भी कहते हैं
चार चरण ,दो दो समतुकान्त ,आठ मात्रा ,अंत 121 अनिवार्य ,
अष्ट मात्रिक छ्न्द
गंगे प्रणाम, तुम मां समान।
है स्वच्छ धार , महिमा अपार ।
श्री राम नाम, है मुक्ति धाम।
जय इष्टदेव , जय वासुदेव ।
नौका विहार , मन का निखार।
नारी समाज , रख मात लाज ।
मन मोह त्याग, आलस्य भाग ।
अब छोड़ खार , गलती सुधार ।
बजती सितार , करती दुलार ।
नभ शंख नाद , छोड़ो प्रमाद ।
कर के विचार , वाणी सुधार।
मन का विराग , अब छेड़ राग ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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छवि छंद (अष्ट मात्रिक छन्द)
( नोट- इसे मधुभार छन्द भी कहते हैं। यह वासव वर्ण संज्ञा या जाति का छन्द है)
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सह लाख पीर, मत हो अधीर,
बनकर सुजान, कर ले विहान।।
माँ का दुलार, तू मत बिसार,
ले हाल-चाल, कर देखभाल ।।
मन की पुकार, सुन बार-बार,
रख स्वाभिमान, छू आसमान।।
पथ पर सँभाल पग को निकाल,
चहुँ दिश निहार, पत्थर हजार ।।
तज दुर्विचार, जीवन सँवार
मन निर्विकार, सुख दे अपार ।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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छवि छंद
बरसे न नीर, फसलें अधीर,
दे झोंक जान, बेबस किसान।
जल जल पुकार, घटती बहार,
पशु पेड़ फूल, जल सर्व मूल।
प्राकृत प्रहार, धरती बिमार,
सब जीव त्रस्त, हो पथ प्रशस्त।
नदियाँ विलीन, रोती जमीन,
है तीक्ष्ण धूप, बदला स्वरूप।
वन खग तड़ाग, बस एक राग,
सुन लो गुहार, कर दो फुहार।
आयुष कश्यप
फारबिसगंज बिहार
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छवि छन्द आधारित गीत
छवि छन्द 8मात्रिक छन्द है अंत गुरु लघु 21, दो-दो चरण समतुकान्त
मुखड़ा
जीवन सँभाल। हे! नंद-लाल।।
अन्तरा (1)
मन की पुकार। करती गुहार।
जीवन सँभाल। हे! नंद-लाल।।
(2)
तू निर्विकार। महिमा अपार।
कर दे निहाल। हे! नंद-लाल।।
(3)
सब जीव त्रस्त। कर पथ प्रशस्त।
काँटे निकाल। हे! नंद-लाल।।
( 4)
दुख हैं हजार। हर बार -बार।
कर देखभाल। हे !नंद-लाल।।
( 5)
बस एक नाम। दूजा न श्याम।
तुम सम विशाल। हे! नंद-लाल ।।
रागिनी गर्ग ,रामपुर यूपी
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छवि छंद
अष्ट मात्रिक छंद, चार चरण, दो दो समतुकांत
अंत जगण
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झिलमिल उजास, दिनकर प्रकाश।
विहग कर शोर, शुभ नवल भोर।
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अगन मधुमास, मिलन उरआस।
व्यथित जग मान, विरह रत गान।
*************
मधुवन उदास, गिरधर प्रवास।
सतत दृग नीर, प्रिय जन अधीर।
*********************
दशरथ विलाप, निज तनय जाप।
वनगमन राम, तज अवध धाम।
******************
कलम अति मन्द, रचित नव छन्द।
प्रखर मति मान, नवल नित ज्ञान।
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गीता गुप्ता 'मन'
छवि छन्द-(मधुभार छन्द)
अष्ट मात्रिक
अंत- जगण 121
रिमझिम फुहार,पल पल बहार,
सलिल सुर ताल,पवन कर ताल।।
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गरज घन घोर,गगन कर शोर,
मगन मन मोर,सजन चित चोर।।
***************
नयन रस धार,प्रणय सुख सार,
अधर मधु पान,मुदित मन मान।।
***************
मिलन मन आस,मदन मधुमास,
मगन मन प्रीत,सजन अब जीत।।
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कमल सम गात,मधुर बरसात,
पलक झुक चूम,मुखर मन झूम।।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)
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छवि छंद-( मधु भार छंद)
अष्ट मात्रिक छंद
चार चरण दो- दो समतुकांत
--------------///--------------
१)कितने उदास, है आसपास,
धरती चक्रांत, जल मग्न प्रांत।
२)माया लगी न, काया जगी न,
आकाश नाश, है काल- पाश।
३)करती सनेह, पाती अनेह,
करती पुकार, सहती फुकार।
४) देखो सिद्धांत, उसका दुखांत,
चातक प्रमेह, घातक सनेह।
५)जीवन उचाट पाई निशाट,
निरलिप्त भाव, चिंता लगाव ।
विनीता सिंह "विनी"
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छवि छ्न्द ---यह अष्ट मात्रिक छ्न्द है ,इसे मधुभार छ्न्द भी कहते हैं
चार चरण ,दो दो समतुकान्त ,आठ मात्रा ,अंत 121 अनिवार्य ,
अष्ट मात्रिक छ्न्द
गंगे प्रणाम, तुम मां समान।
है स्वच्छ धार , महिमा अपार ।
श्री राम नाम, है मुक्ति धाम।
जय इष्टदेव , जय वासुदेव ।
नौका विहार , मन का निखार।
नारी समाज , रख मात लाज ।
मन मोह त्याग, आलस्य भाग ।
अब छोड़ खार , गलती सुधार ।
बजती सितार , करती दुलार ।
नभ शंख नाद , छोड़ो प्रमाद ।
कर के विचार , वाणी सुधार।
मन का विराग , अब छेड़ राग ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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छवि छंद (अष्ट मात्रिक छन्द)
( नोट- इसे मधुभार छन्द भी कहते हैं। यह वासव वर्ण संज्ञा या जाति का छन्द है)
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सह लाख पीर, मत हो अधीर,
बनकर सुजान, कर ले विहान।।
माँ का दुलार, तू मत बिसार,
ले हाल-चाल, कर देखभाल ।।
मन की पुकार, सुन बार-बार,
रख स्वाभिमान, छू आसमान।।
पथ पर सँभाल पग को निकाल,
चहुँ दिश निहार, पत्थर हजार ।।
तज दुर्विचार, जीवन सँवार
मन निर्विकार, सुख दे अपार ।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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छवि छंद
बरसे न नीर, फसलें अधीर,
दे झोंक जान, बेबस किसान।
जल जल पुकार, घटती बहार,
पशु पेड़ फूल, जल सर्व मूल।
प्राकृत प्रहार, धरती बिमार,
सब जीव त्रस्त, हो पथ प्रशस्त।
नदियाँ विलीन, रोती जमीन,
है तीक्ष्ण धूप, बदला स्वरूप।
वन खग तड़ाग, बस एक राग,
सुन लो गुहार, कर दो फुहार।
आयुष कश्यप
फारबिसगंज बिहार
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छवि छन्द आधारित गीत
छवि छन्द 8मात्रिक छन्द है अंत गुरु लघु 21, दो-दो चरण समतुकान्त
मुखड़ा
जीवन सँभाल। हे! नंद-लाल।।
अन्तरा (1)
मन की पुकार। करती गुहार।
जीवन सँभाल। हे! नंद-लाल।।
(2)
तू निर्विकार। महिमा अपार।
कर दे निहाल। हे! नंद-लाल।।
(3)
सब जीव त्रस्त। कर पथ प्रशस्त।
काँटे निकाल। हे! नंद-लाल।।
( 4)
दुख हैं हजार। हर बार -बार।
कर देखभाल। हे !नंद-लाल।।
( 5)
बस एक नाम। दूजा न श्याम।
तुम सम विशाल। हे! नंद-लाल ।।
रागिनी गर्ग ,रामपुर यूपी
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छवि छंद
अष्ट मात्रिक छंद, चार चरण, दो दो समतुकांत
अंत जगण
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झिलमिल उजास, दिनकर प्रकाश।
विहग कर शोर, शुभ नवल भोर।
***************
अगन मधुमास, मिलन उरआस।
व्यथित जग मान, विरह रत गान।
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मधुवन उदास, गिरधर प्रवास।
सतत दृग नीर, प्रिय जन अधीर।
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दशरथ विलाप, निज तनय जाप।
वनगमन राम, तज अवध धाम।
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कलम अति मन्द, रचित नव छन्द।
प्रखर मति मान, नवल नित ज्ञान।
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गीता गुप्ता 'मन'
हमें तो हमारे गुरुदेव ने चरणांत 21 अनिवार्य बताया है, 121 नहीं।
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