सभी गुणीजनों को सादर नमन ।
छंद लेखन श्रृंखला में आज का छंद ।
अथात्यष्टि: सप्तदशाक्षरावृति
-17 वर्णिक-
लक्षण- "मन्दाक्रान्ता कर सुमति को मां भनो तात गा गा।"
चार चरण-प्रति चरण 17 वर्ण ,4 -6-7 वर्ण पर यति
क्रमशः मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु।
यथा- 222 2,11 111 2,21 221 22
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत ।
उदाहरण_
मो भा नीती, तगि गहत क्यों, मुर्खता रे अजाना।
सर्व व्यापी, समुझि मुहिं जो , आत्म ज्ञानी सुजाना।।
मोरी भक्ती, सुलभ तिहिं को , शुद्ध हैं भक्ति जाकी।
मन्दाक्रान्ता, करत मुहिं को , धन्य है प्रीति ताकी।।
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- मन्दाक्रान्ता छंद-
आँखे खोलो, नवल ललना, प्रेम ही प्रेम पाओ।
जोड़ो नाता, कँवर कलिका, श्याम को यों मनाओ।
मन्दाक्रान्ता , पवन बहती, होंश को ये भुलाए।
जांको जागे , अगम मन तो, नेह ही नेह छाए।
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पत्ता पत्ता, सतत कहता, बात मानो जरा ये।
आना जाना, सफल करना, राज जानो जरा ये।
काया माया , क्षणिक ठगनी, साथ तेरा निभाए।
जागो साधो, सिमरण करो, पार ये ही लगाए।
अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन चित्तौरगढ़ राज।
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मंदाक्रांता छंद में एक प्रयास,
कान्हा बोले,सुन प्रियतमा,राधिका प्राण प्यारी।
खोलूँ नैना,नित सुबह तो,याद आये तुम्हारी।।
राखूं मैं जो,अधर पर तो,नाम बंशी पुकारे।
तानों की ये ,मधुर सरिता,शब्द राधा उचारे।।
राधा का भी,तृषित मनवा,दर्श चाहे पिया का
तीखे तीखे,मुदित नयना,राज खोलें हिया का।
गाजे बाजे,जब बदरवा,राग मल्हार गाये।
हैं ये प्रेमी,युगल विरही,भाग्य क्यों ये सताये?
डॉ पूजा मिश्र 'आशना
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मन्दाक्रान्ता छन्द ( वर्णिक )
17 वर्ण, 4,6,7 वर्ण पर यति,
मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु
222 2 , 11 1112 , 21221 22
राधा गोपी , सब सखि कहें, बाँसुरी भोर बाजे।
कृष्णा ग्वाले ,सब मिल रहें , प्रेम माधुर्य साजे।
कालिन्दी के, तट पर खड़े , खेलते हैं बिहारी।
राधा गोरी , पनघट चली , छेड़ते हैं मुरारी।
वो भावों में ,मधुर रस में ,बैठ बन्सी बजाते।
आती-जाती , सब सखि कहें ,चीर कान्हा चुराते।
गाओ नाचो , मिलकर सभी , मेघ छाया घना है।
मन्दाक्रान्ता ,लिख कर सुनो , छन्द प्यारा बना है।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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मन्दाक्रान्ता छंद
१७ वर्णिक छंद, ४/६/७ पर यति
२२२२, १११११ २, २१२२१२२
देखो राधा,बन सुरभि सी,कृष्ण को ढूँढती है।
कान्हा कान्हा,कर जतन वो,कृष्ण में डूबती है।
द्वारे द्वारे,हर डगर पें,बावरी सी फिरे है।
नैनों में भी,अब गहन से,भाव सारे घिरें है।।१।।
राधा रानी,सुधबुध हरी,आँख लाली चढ़ी है।
रो रो हारी,उर दुख भरी,राह नैना गढ़ी है।
ओ रे कान्हा,मत विमुख हो,साँस मेरी थमी है।
आ के मोहे,अगन भर लो, देख तेरी कमी है।।२।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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4,6,7 पर यति
दो दो या चारो चरण समतुकांत
श्यामल घटाएं
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छाई काली ,घन गरजती,श्याम सी ये घटाएं,
ठंडी ठंडी, सुखद सखि री,छेड़ती हैं हवायें।
कूके श्यामा, मधुर सुर में,सोहनी गीत गाये,
झूमे नाचे, शिखि मगन हो,मोहनी रूप भाये।
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मोती माला,अमिय रस की,प्रीत बूंदे पिरोए,
देखो आये,जलधर धरा,नेह धारा भिगोए।
काले काले,घन गगन में,कौंधती दामिनी है,
ऐसा छाया,तमस गहरा,भोर में यामिनी है।
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नीले नीले, सघन बरसे,बूंद की श्वेत माला,
भीगे भीगे, मदन मन ने,पी सुरा प्रेम हाला,
लाली छाई, मुखर मन को, सींचता आज भादों,
बीती बातें, चपल नयना,भीगते प्रेम यादों।
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तेरी मेरी, अनुपम व्यथा,प्राण प्यारे निराली
खोए खोए,नयन मद में,साँवरे प्रीत लाली,
मीठी बातें,मदन मन मे,प्रीत प्यारी जगाए,
मेहा काले,सुखद बरसे,देह सारी भिगाये।
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नैना घोलें मधुर रस के,बोल मीठे सुहाए,
राधा राधा, नटवर वेणू, प्रेम के गीत गाये,
छाया काला, गहन तम का, भोर देखो अँधेरा,
झूमे गाये,प्रमुदित हुआ,बावरा प्रेम मेरा।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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मन्दाक्रान्ता_छंद
अथात्यष्टि: सप्तदशाक्षरावृति
"मन्दाक्रान्ता छंद "-17 वर्णिक
लक्षण- "मन्दाक्रान्ता कर सुमति को मां भनो तात गा गा।"
चार चरण-प्रति चरण 17 वर्ण ,4 -6-7 वर्ण पर यति
क्रमशः मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु।
यथा- 222 2,11 111 2,21 221 22
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत ।
आत्मा भूली, हरि - हरि हरे, नाम प्यारा तुम्हारा,
जन्मों - जन्मों, भटकत रहे, ना मिले मोक्ष द्वारा।
लोभी, पापी, छल-बल करे, नाम से है किनारा,
गाओ-गाओ, हरि गुण हिये, एक सच्चा सहारा।
झूठा ये है, जग सच नहीं, स्वप्न संसार मानो,
जाओ प्यारे, गुरुशरण में, ध्यान की युक्ति जानो।
बोलें जो भी, वचन गुरु के, चित्त से वो निभाना,
धीरे - धीरे, तन - मन सधे, ध्यान सच्चा लगाना।
जितेंदर पाल सिंह