Saturday, June 6, 2020

चन्द्रिका छंद- Hindi poetry



Explined By Neelam Sharma ji ( New Delhi)
नमन साहित्य अनुरागियों 🙏
🙏माँ वीणापाणी को सादर नमन 🙏
साहित्य अनुरागी के सभी अनुरागियों को सादर नमन🙏वंदन।
आओ लगाएँ साहित्य_देवी के मस्तक पर
चन्द्रिका छंद का चंदन।।
साहित्यिक छंद की अविरल बहती इस भागिरथी रूपी काव्यसरिता में अपनी तुच्छ बुद्धि से अंजनी भर अर्घ्य अर्पण करने की कोशिश की है। अभी तक हमने बहुत से विलुप्त वार्णिक छंदों का अध्ययन किया है। आज आप सभी के समक्ष वर्णिक अतिजगती,त्रयोदशाक्षरावृति छंद यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।
🙏🙏सादर प्रेषित 🙏🙏
अतिजगती त्रयोदशाक्षरावृति
13 वर्णिक छंद
-चन्द्रिका छंद-
विधान-नगण नगण तगण तगण गुरु
(111 111 2 21 221 2)
दो दो चरण समतुकांत, 7, 6 यति।
अपलक निरखें,नैन नीले नभी।
अनुपम किशना,देखि प्यारी छबी।।
कण-कण बसते,श्याम श्री देख लो।
प्रमुदित प्रभु को,आप भी देख लो।।
मधुरिम मुरली, रागिनी साधती।
मधु मिलन हिया,राधिका नाचती।।
सरस अमिय सी,बाँसुरी बाजती।
धवल शशि लुभा,चन्द्रिका राचती।।
मधुरिम कथनी, पाति प्यारी लिखे।
प्रतिपल सजनी,श्री मुरारी दिखे।।
मरघट मनवा , मोह माया चुनी।
बरबस हियड़ा, नेह माला गुनी।।
नीलम शर्मा
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चंद्रिका छन्द अतिजगती जाति
त्रयोदशाक्षरावृति
13 वार्णिक
111 111 2, 21 221 2
नगण, नगण, तगण, तगण- गुरु,
7, 6 यति

मन मधुवन में, राधिका झूमती,
रसमय नयना, श्याम के चूमती,
प्रिय मिलन बसी, आस रे साँवरे,
विकल नयन हैं, कृष्ण के बावरे।
*** *** *** *** ***
विरहन तपती, प्रीत में पावनी,
विटप सम खड़ी, छाँव ले भावनी।
सुर अधर धरे,बाँसुरी श्याम की,
अनुपम छवि है, कृष्ण के धाम की।
*** *** *** *** ***
वन उपवन में, झूमती मोरनी,
विपिन थिरकते, गोप भी ग्वालिनी,
सघन घन घिरे, मेघ काली छटा,
चपल मन पिया,मोह लेती घटा।
*** *** *** *** ***

कनक मुकुट में, मोर पाखी सजी,
नरकट हरि की, मोहनी सी बजी।
कुहुक कुहकती, कोकिला कूकती,
मुदित मद भरी, रागिनी घोलती।
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प्रमुदित मन से, नाचती मोहनी,
सजन सँवरती, साँवरी सोहनी।
सुरभि मलय सी, मंद वायू चले,
सुमन पथ भरे,रंग लाखों खिले।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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चंद्रिका छंद,13 वार्णिक
नगण नगण तगण तगण दीर्घ
111 111 221 221 2

सुखद-सरस हों,मित्र संसार में।
अमिय हृदय की,पावनी धार में।
जगत अमर है,प्रेम के सार में।
अटल विजय है, दर्प के हार में।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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चन्द्रिका छन्द (वर्णिक)
अतिजगती , त्रयोदशाक्षरावृति
13 वर्ण , 7,6 पर यति ,
नगण नगण तगण तगण गुरु
111 111 2 , 21 221 2

मन मुदित पिया , संग नैना लड़े,
नव रतन बने , कर्णिका में जड़े ।

तन-मन-धन से ,पिया की पावनी,
मधु मिलन प्रिये , प्रीत की छावनी।

छवि निरखत है , श्याम की मोहनी,
अधर पर सजी , बाँसुरी सोहनी।

सुमन खिल रही , वाटिका साजती,
गिरधर हिय में ,राधिका राजती।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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चंद्रिका छंद अतिजगती जाति
त्रयोदशाक्षरावृति
13 वार्णिक
111 111 2, 21 221 2
नगण , नगण , तगण , तगण - गुरु ,
7 , 6 यति

पवन चमन में , प्रेम फैला रही ,
जगत सुमन ये , मोह उड़ा रही ।
नरम नयन ये , रोज ताँके जिया ,
किरन जलन ये , प्यार माँगे पिया ।

सफल विफल है , मान दोनों सभी ,
सरल तरल ये , नैन जागे कभी ।
कदर कथन यूँ , भाव जागे जिया ,
कपट खपट ये , दाव खेले जिया ।

रजिन्दर कोर ( रेशू)
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चंद्रिका छंद, १३ वर्णिक छंद,
अतिजगती,त्रयोदशा क्षरावृत्ति जाती का छंद,
नगण नगण तगण तगण गुरु ,७/६ पर यति।
१११ १११ २२१ २२१ २

तन,मन,धन से,देख जोडा तुझे।
सजन वचन से,देख थोडा मुझे।
सजल नयन में, आस प्यारी जगी।
नवल अगन की, रीत न्यारी लगी।।१।।

पुनीत डगर पें, साथ तेरे चलूँ।
ग़ज़ल बन कभी ,संग मैं भी ढलूँ।
सजन मिलन को,रात आहें भरे।
कठिन समय की,बात काहें करे?।।२।।

सरस मधुर ये,प्रेम धारा बहे।
कमल अधर ये,गीत प्यारा कहे।
हृदय जतन हो,भाव ऐसे भरो।
सुखद मिलन से,पीर मेरी हरो।।३।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद ✍️

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