Saturday, February 6, 2021

किरीट_सवैया - Hindi poetry

 



जय माँ शारदा

एक सम्यक अंतराल के बाद पुनः
छंद सृजन श्रृंखला प्रारम्भ करते है । *इस पोस्ट पर प्रेषित समस्त उपयुक्त रचनाएँ साहित्य अनुरागी ब्लॉग में प्रकाशित की जायेगी।
आप सभी का अभिनन्दन।
चार चरण
विधान- भगण *8
24 वर्ण प्रति चरण।
उदाहरण
रसखान रचित
मानुष हो त वही रसखान बसों नित गोकुल गाँव के गवारन।
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मौलिक उदाहरण।
किरीट सवैया
प्रीत फले अँगना जिसके उर,
मोह न राग रहे घट भीतर।
देख सके समता मनुजों पर,
भेद न जानत भीतर बाहर।।
लौ लगती रहती जिसके मन,
जागत पावत बात उजागर।
केशव माधव त्रास हरो सब,
हो किरपा सब पे करुणाकर।।
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अविराज
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जय भोलेनाथ
किरीट सवैया,24 वर्ण,8 भगण (221)
चन्द्र सदा शिव शोभित शीश गले अति शोभिय व्याल विराजत।
अंग लगाकर भस्म चले शिव भंग सदा अति है मन भावत।
मात उमा शिव संग रहें दिन-रात सदा सुख हैं उर पावत।
भक्त सभी मिल आपस में शिव की महिमा नित हैं बस गावत।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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किरीट सवैया छन्द (वर्णिक )
12 वर्ण , यति 12 पर , 211×8 ,
इसमें चारों चरण समतुकान्त होते हैं
भगण भगण भगण भगण , भगण भगण भगण भगण ।
211 211 211 211 , 211 211 211 211
वास करें प्रभु राम सिया मन, अद्भुत रूप बसे मन में सिय।
हे करुणानिधि नैन बसो तुम ,नैन विशाल हुए सब के प्रिय।
संकट मोचन कष्ट हरो सब , दूर करो अभिमान सदा हिय ,
जीवन की विपदा हर लो प्रभु ,हे कमलापति पद्मप्रिया पिय।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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किरीट सवैया
१२/१२ पर यति,
२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २११
राम भजो अब कृष्ण भजो अब,नाम यही अब साथ कहो सब।
पावन है अरु मंगल उज्वल,एक यही स्वर रोज कहो अब।
राग जपो यह संकट नाशक,हो दिन रात सनेह कहो जब।
भक्त अनन्य अशेष अभी बन, आज नही तब सोच कहो कब?
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद 
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किरीट सवैया
वर्णिक छंद
भगण×8
211 211 211 211,
211 211 211 211
किरीट छंद महिमा
छंद किरीट महान लगे सच, अक्षर-अक्षर लेपित चंदन।
गान करें यदि साध कभी लय, वास करें मुख में रघुनंदन।
तान बजे मुरली सम मोहक,भाव लिखें जब शब्द प्रबंधन।
छंद घुला अति भाव मनोरम,नाद उठे जिमि ईश्वर वंदन।।

माँ
हे! जननी जयकार करूँ कर,जोड़ सदा अभिनंदन वंदन।
आँचल अंदर नेह सुवासित, पावन ज्यों खुशबू वन चंदन।
पोषित नैन डटीं पलकें द्वय, मातृ सदा हित रक्षण नंदन।
व्याकुलता जस मीन विना जल,देख सुता-सुत लोचन क्रंदन।।

भारत भूमि
भारत भू पर रोग निवारक, औषधि जंगल पर्वत सागर।
शोध करें नित,रोग हरें नित, देश विदेश गुणीजन आकर।
वेद, पुराण, कुरान यहाँ पर, धन्य धरा सच भारत पाकर।
आज उठा सर गर्व करें हम,विश्व गुरू सच नाम कमाकर।।

अष्ट योग
संत पतंजलि हैं कहते सुन, योग कलेवर आठ पढ़ो सब।
हो बहिरंग अनुष्ठित जो तन,धारण, ध्यान, समाधि बढ़ो तब।
जो करते नित योग धरा पर,रोग हरे सब ,जीव मिले रब।
सत्य लगे यह बात गुणीजन,सूरज ज्यों उगता सुन पूरब।।
स्वरचित व मौलिक
कप्तान अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, पकरिया,बाँका, बिहार व लखनऊ,उत्तरप्रदेश

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छंद- किरीट सवैया (वर्णिक छंद)
भगण-8
भगण -भगण-भगण भगण ,
भगण भगण भगण भगण
211 211 211 211,
211 211 211 211
चारो चरण समतुकांत
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कोयल कूक सुने जब भी तब हूक उठे मन में अति पावन।
प्रीति लिए सखि मंद हवा तन को लगती मुझको मन भावन।
साथ लिए मधुमास चला अब आस बढाय बसंत लुभावन।
भौह कमान बनी तनके कब लक्ष्य मिलें सखि री प्रिय साजन।।
विनीता सिंह
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